धोलावीरा
हड़प्पाकालीन नगर धोलावीरा की खोज वर्ष 1969 में पुरातत्वविद जगपति जोशी (जे.पी. जोशी) ने की थी। वर्ष 1989 से 1991 तक आर.एस. बिष्ट ने इस स्थान का उत्खनन किया था। धोलावीरा को वर्ष 2021 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है।
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की भांति धोलावीरा के लोग कौन सी भाषी बोलते थे तथा किस लिपि का प्रयोग लेखन कार्य में किया जाता था यह आज भी अज्ञात है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लगभग 400 मूल संकेत पाए गए हैं। साधारणतया शब्दों की लिखावट दायें से बायीं दिशा की ओर मिलता है। इनमें से अधिकांश लिपियाँ मुहर तथा छाप के रूप में पायी गयी हैं। कुछ लिपि तांबे और कांसे के प्रस्तर तथा कुछ टेराकोटा और पत्थर के रूप में पायी गयी हैं। मुहरों से ऐसा प्रतीत होता है कि इनका उपयोग व्यापर और आधिकारिक प्रशासकीय कार्य हेतु किया जाता रहा होगा।
धोलावीरा सिन्धु घाटी सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल था जो 3 भागों में विभाजित था। प्रान्त अधिकारियों के लिए तथा सामान्य जनता के लिए अलग-अलग विभाग थे। प्रान्त अधिकारियों का विभाग मजबूत पत्थर की सुरक्षित दीवार से बना था, जबकि अन्य नगरों का निर्माण कच्ची पक्की ईंटों से हुआ था। धोलावीरा का निर्माण चौकोर एवं आयताकार पत्थरों से हुआ है, जिन्हें समीप ही स्थित खदानों से लिया गया था।
धोलावीरा से प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था, जहाँ पर सभी व्यापारी थे। यह कुबेरपतियों का महानगर था। यहाँ से प्राप्त साक्ष्यों से लगता है कि सिन्धु नदी यहीं पर समुद्र से मिलती थी। भूकंप के कारण धोलावीरा का सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँचा-नीचा हो गया है। धोलावीरा में वर्तमान के महानगरों जैसी पक्की गटर व्यवस्था 5000 वर्ष पूर्व भी मौजूद थी। इस प्राचीन महानगर में पानी की व्यवस्था अद्भुत थी,यहाँ से चट्टान काटकर बनाये गए तालाबों के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर नामक छोटी नदी से पानी जमा होता था। इस पूरे महानगर से धार्मिक स्थलों के कोई अवशेष प्राप्त नहीं होते हैं।
धोलावीरा के सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस समय का एक साईन बोर्ड अथवा शिलालेख पाया गया है। इस शिलालेख पर 10 बड़े-बड़े चिन्हों में कुछ लिखा गया है, जो 5000 वर्ष पश्चात भी सुरक्षित अवस्था में है, लेकिन इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। जिस कारण यह आज भी रहस्य बना हुआ है कि वह महानगर का नाम है अथवा प्रान्त के अधिकारियों का नाम। धोलोवीरा से 16 जलाशयों की प्राप्ति होती है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इस नगर में जल प्रबंधन तथा वाटर हार्वेस्टिंग की उन्नत व्यवस्था थी।
महत्वपूर्ण बिन्दु
- धोलावीरा की खोज वर्ष 1969 में पुरातत्वविद जगपति जोशी (जे.पी. जोशी) ने की थी।
- यह भारत में हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है।
- धोलावीरा हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र ऐसा नगर था जो 3 भागों में विभाजित था।
- यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है।
- यहाँ से हड़प्पन लिपि के बड़े आकार के 10 चिन्हों वाला एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है, जिसे उस समय का साईन बोर्ड माना जा रहा है।
- यहाँ से हड़प्पन संस्कृति के सन्दर्भ में शैलकृत स्थापत्य के प्रमाण मिले हैं।
- धोलावीरा से 16 जलाशयों की प्राप्ति हुई है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहाँ पर उन्नत जल प्रबंधन व्यवस्था थी।
- यहाँ से पारसी गल्फ मुहर प्राप्त हुई है।
- यहाँ से हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र खेल का मैदान प्राप्त हुआ है।
- हड़प्पा सभ्यता की पहली खगोलीय पर्यवेक्षणशाला धोलावीरा से ही प्राप्त हुई है।
- इसे हड़प्पा सभ्यता का सबसे नवीन स्थल माना गया है।
- वर्ष 1989 से 1991 तक आर.एस. बिष्ट ने इस स्थान का उत्खनन किया था।
- यहाँ से चट्टान काटकर बनाये गए तालाबों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- धोलावीरा को वर्ष 2021 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।
- यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है।
- धोलावीरा कुबेरपतियों का महानगर था।
- इस पूरे महानगर से धार्मिक स्थलों के कोई अवशेष प्राप्त नहीं होते हैं।
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