महावीर स्वामी
जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। भगवान महावीर का जन्म उस युग में हुआ था जिसमें हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव बहुत बढ़ गया था। उन्होंने दुनिया को सत्य तथा अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
जन्म- भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद भगवन महावीर का जन्म हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति प्रारम्भ होने के कारण उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है।
विवाह- जैन दर्शन की दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था भोगों में उनकी रूचि नहीं थी, इसलिए भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे। परन्तु इनके माता-पिता इनकी शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। इसके विपरीत जैन दर्शन की श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह संतपुर के महासामन्त समरवीर की पुत्री यशोदा के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की एक अति सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई जिसका विवाह राजकुमार जमाली के साथ हुआ। भगवान महावीर के दामाद जमाली भी इनके शिष्य हुए।
तपस्या- महावीर स्वामी के माता पिता की मृत्यु के पश्चात उनके मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, परंतु जब उन्होने इसके लिए अपने बड़े भाई से आज्ञा मांगी, तो उन्होने अपने भाई से कुछ समय रुकने का आग्रह किया। तब महावीर स्वामी जी ने अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुये 2 वर्ष पश्चात 30 वर्ष की आयु मे वैराग्य लिया। इतनी कम आयु में घर का त्याग कर ‘केशलोच’ के साथ जंगल में रहने लगे। वहां उन्हें 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्हें ‘केवलिन’ नाम से जाना गया तथा उनके उपदेश चारों और फैलने लगे। दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन दिनचर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहने लगे। श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर स्वामी दीक्षा प्राप्त करने के उपरान्त कुछ समय छोड़कर शेष समय निर्वस्त्र रहे और उन्होंने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में भी मिलता है। 12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक(अजातशत्रु) और चेटक भी शामिल थे। 72 वर्ष की आयु में भगवन महावीर को पावापुरी नामक स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
महावीर स्वामी की शिक्षाएँ- तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया है। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत- अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) तथा ब्रह्मचर्य बताये ये सिद्धांत ही जैन धर्म का आधार बने। इस सिद्धान्त को अपना कर ही एक अनुयायी सच्चा जैन अनुयायी बना जा सकता है।
अहिंसा- अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसका बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे इसे विशेष रुप से देखा जा सकता है। जैन दर्शन के अनुसार प्रकृति का कण-कण स्वतंत्र है और हमें किसी की स्वतंत्रता को छीनने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए जैन धर्म में हिंसा सबसे बड़ा पाप माना गया है।
सत्य- जैन धर्म के इस महाव्रत में सत्य बोलने पर जोर दिया गया है। इस महाव्रत को निम्न प्रकार से अमल में लाया जा सकता है-
- सदैव सोच-विचार कर बोलना चाहिये।
- क्रोध आने पर शान्त रहना चाहिये।
- लोभ होने पर मौन रहना चाहिये।
- हँसी में भी झूठ नहीं बोलना चाहिये।
- भय होने पर भी झूठ नहीं बोलना चाहिये।
अस्तेय (चोरी न करना):- इसके अंतर्गत निम्नलिखित बातें बताई गयी है -
- बिना किसी की अनुमति के उसकी कोई भी वस्तु न लेना।
- बिना आज्ञा किसी के घर में प्रवेश न करना।
- बिना अनुमति के किसी के घर में निवास न करना।
- गुरू की आज्ञा लिए बिना भिक्षा में प्राप्त अन्न को ग्रहण न करना।
- यदि किसी के घर में रहना हो तो बिना उसकी आज्ञा के उसकी किसी भी वस्तु का उपयोग न करना।
अपरिग्रह (धन संचय का त्याग)- सम्पत्ति से मोह और आसक्ति का उदय होता है। इसलिए जैन धर्म के इस महाव्रत में किसी भी प्रकार की सम्पत्ति एकत्रित न करने पर जोर दिया गया है।
ब्रह्म्रह्मचर्य- इस महाव्रत के अंर्तगत भिक्षुओं से निम्न कृत्य अपेक्षित हैं-
- किसी स्त्री को न देखना।
- किसी स्त्री से बातें न करना।
- किसी स्त्री के संसर्ग की बात कभी न सोचना।
- शुद्ध एवं अल्प भोजन ग्रहण करना।
- ऐसे घर में न जाना जहाँ कोई स्त्री अकेली रहती हो।
भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक समान हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं के लिए पसन्द हों। यही महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त है।
भगवान महावीर के प्रमुख ग्यारह गणधर-
- श्री इंद्र्भूती जी
- श्री अग्निभूति जी
- श्री वायुभूति जी
- श्री व्यक्त स्वामीजी
- श्री सुधर्मा स्वामीजी
- श्री मंडितपुत्रजी
- श्री मौर्यपुत्र जी
- श्री अकम्पित जी
- श्री अचलभ्राता जी
- श्री मोतार्यजी
- श्री प्रभासजी
महावीर स्वामी के विभिन्न नाम एवं उनसे जुड़े कारण-
- वर्धमान – जन्म के बाद राज्य में उन्नति प्रारम्भ होने के कारण बाल्यावस्था का नाम।
- महावीर – घर त्यागने से वो महावीर कहलाये।
- निर्ग्रन्थ - गृह त्याग और ज्ञान प्राप्ति के बिच निर्ग्रन्थ कहलाए।
- जिन – इंद्रियों को जीत लिया तो जिन कहलाए।
- केवलिन – ज्ञान प्राप्त होने से केवलिन की उपाधि मिली।
- अर्हत – लोगों के दुख एव समस्याओं को दूर करने से मिला।
- निगण्ठ नाथपुत्त – यह बौद्ध साहित्य का वर्णित नाम है।
महावीर स्वामी के विषय में विशेष तथ्य-
- भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ
- इनका जन्म वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था।
- इनके पिता क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था।
- जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद भगवन महावीर का जन्म हुआ था।
- भगवान महावीर के जन्म के बाद राज्य में उन्नति प्रारम्भ होने के कारण उनका नाम वर्धमान रखा गया था।
- जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है।
- जैन दर्शन की दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान महावीर बाल ब्रह्मचारी थे।
- जैन दर्शन की श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह संतपुर के महासामन्त समरवीर की पुत्री यशोदा के साथ सम्पन्न हुआ था।
- भगवान महावीर की पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था।
- भगवान महावीर के दामाद जमाली थे, जो आगे चलकर भगवान महावीर स्वामी के शिष्य बने थे।
- भगवान महावीर ने अपने बड़े भाई से आज्ञा प्राप्त करके 30 वर्ष की आयु में मे वैराग्य लिया।
- उन्हें 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।
- ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात उन्हें केवलिन के नाम से जाना गया।
- जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती के रूप में मनाया जाता है।
- उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
- तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया है।
- 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने 4 शील बताये थे, जबकि महावीर स्वामी ने पाँचवाँ शील गुण ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया।
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box...