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शिशुनाग वंश (Shishunaga Dynasty)

 शिशुनाग वंश 




    शिशुनाग राजवंश मगध का एक प्राचीन राजवंश था। हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक की हत्या करके शिशुनाग ने ही 413 ई.पू. शिशुनाग राजवंश की स्थापना की थी। शिशुनाग राजवंश का शासनकाल 413 ई.पू.- 345 ई.पू. माना जाता है। शिशुनाग वंश के शासकों ने वैशाली को पुनर्स्थापित किया था तथा मगध की प्राचीन राजधानी गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया था। इस वंश के प्रथम शासक शिशुनाग ने गिरिव्रज के साथ- साथ वैशाली को भी अपनी राजधानी बनाया था। शिशुनाग वंश के संस्थापक के बारे में कहा जाता हैं कि उनका जन्म ईसा पूर्व 6वीं सदी में वैशाली में निवास करने वाली लिच्छवी नामक एक जाति में  हुआ था। लिच्छवी राजा (लिच्छवी जाति में उत्पन्न) के पुत्र शिशुनाग ने एक वैश्या की कोख से जन्म लिया था। शिशुनाग ने बंगाल की सीमा से लेकर मालवा तक के विशाल भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। 

    शिशुनाग वंश के संस्थापक राजा शिशुनाग की 394 ईसा पूर्व में मृत्यु हो गई। राजा शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात इनका पुत्र कालाशोक शिशुनाग वंश के अगले राजा बने। पौराणिक इतिहास के अनुसार शिशुनाग के पुत्र कालाशोक  का नाम काकवर्ण मिलता हैं। काकवर्ण (कालाशोक) ने शिशुनाग वंश के राजा के रूप में 28 वर्षों तक राज किया।

    शिशुनाग वंश के लिए राजा काकवर्ण (कालाशोक) के 2 मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं -. राजा काकवर्ण अर्थात कालाशोक ने अपने कार्यकाल में वैशाली नगर (वर्तमान का पटना शहर) में द्वितीय बौद्ध संगति का आयोजन करवाया था। कालाशोक के कार्यकाल का दूसरा मुख्य कार्य मगध की राजधानी को बदलना था। इन्होंने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित की।

    366 ईसा पूर्व महापद्मनंद नामक एक व्यक्ति ने शिशुनाग वंश के राजा कालाशोक की उस समय हत्या कर दी थी जब वो प्रशासनिक कार्यों की देखरेख के लिए पाटलिपुत्र का दौरा कर रहे थे। इस घटना के संबंध में बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्र में उल्लेख मिलता है। शिशुनाग वंश के राजा कालाशोक की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्रों ने लगभग 22 वर्षों तक मगध पर शासन किया था।

महत्वपूर्ण बिन्दु

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