ऋग्वेद
ऋग्वेद- सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत तथा प्रमुख ग्रन्थ है। इसमें 10 मण्डल 1028 सूक्त और वर्तमान में 10,600 मन्त्र हैं, मन्त्रों की संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। कुछ विद्वानों ने मन्त्रों की संख्या 10527 बताई है। इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की कुल संख्या 432000 है। इस वेद का मूल विषय ज्ञान है। मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र दिए गए हैं। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाओं में से एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है।
ऋग्वेद सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पुस्तक है। इसकी प्रारम्भिक परतें किसी भी इंडो-यूरोपीय भाषा में सबसे पुराने मौजूदा ग्रन्थों में से एक हैं। ऋग्वेद की ध्वनियों और ग्रन्थों को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौखिक रूप से प्रसारित किया गया है। दार्शनिक और भाषाई साक्ष्य इंगित करते हैं कि ऋग्वेद संहिता की रचना भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 1500 और 1000 ईसा पूर्व हुई थी।
ऋक् संहिता में 10 मण्डल तथा बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मन्त्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एक दैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मन्त्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र भी ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त, श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त, तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त तथा हिरण्यगर्भ सूक्त और विवाह आदि के सूक्त वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखाई देता है।
इस ग्रन्थ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण रचना माना गया है। ईरानी अवेस्ता की गाथाओं का ऋग्वेद के श्लोकों के जैसे स्वरों में होना, जिसमें कुछ विविध भारतीय देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है। इस वेद में बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, एकात्मवाद का उल्लेख है। इस वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिए सर्वत्र 'सप्त सिन्धवः' शब्द का प्रयोग हुआ है। इस वेद लगभग 25 नदियों का उल्लेख किया गया है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन अधिक है।सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है। इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है। ऋग्वेद में 'वाय' शब्द का प्रयोग जुलाहा तथा 'ततर' शब्द का प्रयोग करघा के अर्थ में हुआ है। ऋग्वेद के 9वें मण्डल में सोम रस की प्रशंसा की गई है।
ऋग्वेद के 10वें मंडल मे पुरुषसुक्त का वर्णन है। "असतो मा सद्गमय" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। सूर्य को सम्बोधित "गायत्री मंत्र" ऋग्वेद में उल्लेखित है। इस वेद में गाय के लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग किया गया है। इस वेद के 7वें मण्डल में सुदास तथा दस राजाओं के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है, जो कि पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया। इस युद्ध में सुदास की जीत हुई । ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख 24 बार हुआ है। इस वेद में केवल हिमालय पर्वत तथा इसकी एक चोटी मुञ्जवन्त का उल्लेख हुआ है। ऋग्वेद के मंत्रों को ऋचा कहा जाता है। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है, लेकिन सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं।
ऋग्वेद में कुछ शब्दों का एक से अधिक बार प्रयोग हुआ है, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण शब्द निम्नलिखित हैं-
शब्द जितनी बार वर्णन हुआ है
- पिता 335
- जन 275
- इंद्र 250
- माता 234
- अग्नि 200
- घोडा (अश्व) 215
- गाय 176
- विश(बैल) 170
- सोम 144
- आर्य 36
- कृषि 33
- वरुण 30
- वर्ण 23
- ब्राह्मण 15
- समिति 9
- सभा 8
- यमुना 3
- रूद्र 3
- गंगा 1
- वैश्य 1
- शूद्र 1
- राजा 1
- पृथ्वी 1
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