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हर्यक राजवंश (Haryak Dynasty)

हर्यक राजवंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक)

    हर्यक वंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक) की स्थापना बिम्बिसार ने की थी। बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने 'गिरिव्रज' (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ था। कौशल, वैशाली एवं पंजाब आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। बिम्बिसार ने करीब 52 वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका 492 ई. पू. में निधन हो गया। नागदशक 'हर्यक वंश' का अंतिम शासक था। उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई. पू. में नागदशक की निर्बलता का लाभ उठाकर गद्दी पर अधिकार कर लिया और 'शिशुनाग वंश' की स्थापना की। हर्यक वंश के शासकों  ने लगभग 132 वर्षों तक शासन किया था। अजातशत्रु द्वारा अपने पिता बिम्बिसार तथा उदयिन द्वारा अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर राजगद्दी प्राप्त करने के कारण ही हर्यक वंश को पितृहंता वंश के नाम से भी जाना जाता है। 
















बिम्बिसार
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 बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने 'गिरिव्रज' (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। कौशल, वैशाली एवं पंजाब आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। बिम्बिसार ने करीब 52 वर्षों तक शासन किया। पुराणों में बिम्बिसार को 'श्रेणिक' कहा गया है। बिम्बिसार के राज्य में 70,000 गांव थे। भारतीय इतिहास में बिम्बिसार ऐसा प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी थी। बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में नियुक्‍त किया था। बिम्बिसार ने बौद्ध भिक्षुओं को निःशुल्क जल यात्रा की अनुमति प्रदान  थी।

    बिम्बिसार के उच्चाधिकारी को 'राजभट्ट' कहा जाता था तथा उन्हें चार क्ष्रेणियों में विभाजित किया गया था- 
  • 'सम्बन्थक' सामान्य कार्यों को देखते थे।
  • 'सेनानायक' सेना का कार्य देखते थे।
  • 'वोहारिक'न्यायिक कार्य करते थे।
  • 'महामात्त' उत्पादन कर एकत्र किया करते थे।

बिम्बिसार की हत्या महात्मा बुद्ध के विरोधी देवव्रत के उकसाने पर बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु द्वारा की गयी थी।


अजातशत्रु- अजातशत्रु (लगभग 493 ई. पू.) मगध का एक प्रतापी सम्राट था। इसने अपने पिता बिंबिसार को मारकर राज्य प्राप्त किया था। बिंबिसार ने मगध का विस्तार पूर्वी राज्यों में किया था, इसलिए अजातशत्रु ने अपना ध्यान उत्तर और पश्चिम पर केंद्रित किया। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी वजिरा से विवाह किया था।  वृजी संघ के साथ युद्ध के वर्णन में 'महाशिला कंटक' नाम के हथियार का वर्णन मिलता है जो एक बड़े आकर का यन्त्र था, इसमें बड़े बड़े पत्थरों को उछलकर मार जाता था। इसके अलावा 'रथ मुशल' का भी उपयोग किया गया। 'रथ मुशल' में चाकू और पैने किनारे लगे रहते थे, सारथी के लिए सुरक्षित स्थान होता था, जहाँ बैठकर वह रथ को हांककर शत्रुओं पर हमला करता था। अजातशत्रु के समय की सबसे महान घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण (483 ई. पू.) थी । उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और बुद्ध अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया। अजातशत्रु एक बौद्ध अनुयायी था। आगे चलकर अजातशत्रु के शासनकाल में ही राजगृह में वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा में बौद्ध संघ की प्रथम संगीति हुई जिसमें बौद्ध ग्रन्थ सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ।

उदायिन- उदायिन (461 ई.पू. से 445 ई.पू.) हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु का पुत्र था। उसने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। परिशिष्टपर्वन और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिन चंपा का राज्यपाल रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। अजातशत्रु के मृत्यु के पश्चात सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया जिसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर मगध की राजधानी गया और वहां का शासन संभाला। परिशिष्टपर्वन, गार्गी संहिता तथा 'वायुपुराण' के अनुसार उदायिन ने गंगा एवं सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नाम की राजधानी स्थापित की थी।

    उदायिन ने सोन नदी के तट पर स्थित पाटलिपुत्र से कुछ मील दूर गंगा के किनारे 'कुसुमपुर' नामक नगर की स्थापना की थी। बाद में कुसुमपुर बृहत्तर पाटलिपुत्र का भाग बन गया था।

महत्वपूर्ण बिन्दु

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